दसलक्षण महापर्व का शुभारंभ दसलक्षण मंडल विधान के साथ हुआ
विश्वास पारीक
निवाई-(आल टाइम ब्रेकिंग) सकल दिगंबर जैन समाज के तत्वाधान में सहस्त्रकूट विज्ञातीर्थ पर दसलक्षण महापर्व का शुभारंभ दसलक्षण मंडल विधान के साथ बड़े भक्ति भाव से गाजे बाजे से हुआ| सकल दिगंबर जैन समाज निवाई के तत्वाधान में सभी जिनालयों में उत्तम क्षमा धर्म की पूजा एवं विधान किया गया| विज्ञातीर्थ कार्याध्यक्ष सुनील भाणजा एवं विज्ञातीर्थ प्रतिनिधि हितेश छाबड़ा ने बताया कि दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में एवं श्री दिगंबर जैन अग्रवाल मंदिर में सांयकाल में शास्त्र सभा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ| इसी प्रकार सहस्त्रकूट विज्ञातीर्थ पर प्रातःकाल भगवान शांतिनाथ का अभिषेक एवं शांति धारा हुई उसके पश्चात दसलक्षण मंडल विधान हुआ उसमें सौंधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य औमप्रकाश ललवाड़ी वालो को सौभाग्य प्राप्त हुआ | गणिनी आर्यिका105 विज्ञाश्री माताजी की शिष्या आर्यिका 105 ज्ञानश्री माताजी का प्रवचन हुआ| माताजी ने प्रवचन के दौरान दसधर्म के बारे में बताया कि की कोई श्रावक अगर किसी से पूछे कि दसलक्षण महापर्व कैसे मनाया जाता हैं तो वह यही उत्तर देगा की इन दिनों लोग संयम से रहते हैं पूजन पाठ करते हैं व्रत नियम उपवास रखते हैं हरित पदार्थ का सेवन नहीं करते हैं स्वाध्याय और तत्व चर्चा में ही अधिकांश समय बिताते हैं शास्त्र सभा होती है उत्तमक्षमादि दसधर्म का स्वरूप समझाया जाता है सभी लोग कुछ ना कुछ नियम धारण करते हैं दान देते हैं आदि अनेक प्रकार के धार्मिक कार्य में संलग्न रहते हैं सर्वत्र एक प्रकार से धार्मिक वातावरण बन जाता है पर्व दो प्रकार के होते हैं शाश्वत और सामायिक जिन्हें हम त्रैकालिक और तात्कालिक भी कह सकते हैं माताजी ने बताया की क्रोध का एक खतरनाक रूप है बैर, क्रोध से भी खतरनाक मनोविकार है वस्तुत वह क्रोध का ही एक विकृत रूप है बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है क्रोध के आवेश में हम तत्काल बदला लेने की सोचते हैं, सोचते क्या है तत्काल बदला लेने लगते हैं जिसे शत्रु समझते हैं। क्रोध के आवेश में उसे भला बुरा कहने लगते हैं मारने लगते हैं पर जब हम तत्काल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न कर मन में ही उसके प्रति क्रोध को इस भाव से दबा लेते हैं कि अभी मौका ठीक नहीं है शत्रु प्रबल है मौका लगने पर बदला लेंगे तब वह क्रोध बैर का रूप धारण कर लेता है और वर्षों दबा रहता है तथा समय आने पर प्रकट हो जाता है इसलिए हमें क्रोध का त्याग कर क्षमा धर्म का पालन करना चाहिए क्षमा के साथ लगा उत्तम शब्द सम्यक दर्शन की सत्ता का सूचक है। सम्यक दर्शन के साथ होने वाली क्षमा ही उत्तम क्षमा है इसलिए हमें क्षमा धर्म को अपनाना चाहिए क्योंकि क्षमा आने के बाद ही हम मान का गलन कर सकते हैं |चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष विष्णु बोहरा व गोलू चवरिया ने बताया की विज्ञातीर्थ पर पूजन एवं विधान करने में अरविंद ककोड,महेश मोटूका,शैलेंद्र संघी,मोनू पाटनी,सुंदर पाटनी,जय कुमार गिंदोडी,सुनील भाणजा,हितेश छाबड़ा,कैलाश जयपुर,किशु पदमपुरा,अशोक रेनवाल,आकाश सिंहल,अंकुर झिराना सहित कई श्रद्धालु मौजूद थे|
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